गीतकार/कवि : सुशांत प्रियां श
भटकता मैं फिरू दर-दर मेरी करतार बन जाओ।
मेरी कश्ती भंवर में डोले, मेरी पतवार तुम बन जाओ।
गुजरा खेल में मेरा बचपन, जवानी मौज में सारी काटी।
गिर ना जाऊं माँ संभालो, तुम दृढ़ आधार बन जाओ।
मेरी कश्ती भंवर में डोले, मेरी पतवार तुम बन जाओ।
घेरे हैं गम के अंधियारे, उजाला तुम करो मेरी मैया।
दीपक से बाती बुझ नहीं जाए, करो हाथों की तुम छैया।
खिलौना तेरा टूट ना जाए, सृजंन-हार बन जाओ मैया।
मेरी कश्ती भंवर में डोले, मेरी पतवार तुम बन जाओ।
ना जानू आरती तेरी, ना पूजन और भजन मैं जानू।
हू बालक शारदे मैं तेरा, ना जप-तप और हवन मैं जानू।
बसों उर-कंठ माँ तुम मेरे, मधुर-झंकार तुम बन जाओ।
मेरी कश्ती भंवर में डोले मेरी पतवार तुम बन जाओ।
भटकता मैं फिरू दर-दर मेरी करतार तुम बन जाओ।
मेरी कश्ती भंवर में डोले, मेरी पतवार तुम बन जाओ।